सिका छ ,सीकावा छ, सीके राज घडवा छ,सीको गोरमाटी सिकलो रा, सिक सिक राज पथ चढलो रा,सीके वाळो सिक पर लेल सेवारो रूप रा.---Dr.Chavan Pandit


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Monday, April 13, 2009

Origin Of Banjaras….

I have a book written by Swami Gokul Dasji Maharaj…named “Banjara Bhaskar”.It was published in 1970(Agahan Pornima,Vikran year-2026).It is in Hindi I am giving you the text from it,as it is…

बन्जारा जाति कि उत्पत्त्ति

इसी सन्दर्भ में एक पौराणिक कथा प्रचलित है की भगवान शंकर ने अपने संकल्प से अनेको प्रकार के गणों की सृष्टि की. इन गणों में पांच गन बड़े सुंदर स्वरुप,गौरवर्ण,अत्यन्त पराक्रमी,बड़े तेजस्वी ,हाथो में धनुष बन ,भाला बरछी,कृपाण आदि आयुध लिए प्रकट हुए.जिन्हें देख भगवान शिवजी उनकी सुन्दरता पर अत्यन्त प्रसन्न हो उन्हें “गौर ” की उपाधि देकर अपने नन्दीश्वर और सिंह की देख-भाल करने तथा गृह कार्य की आवश्यकिय वस्तुओं की व्यवस्था का कार्य सोप कर अन्य गणों में उनको मुखिया (नायक ) बना दिये.यह देख कर वे लोग भगवान शिव्-गौरि कि स्तुति करते हुए अपने कार्य को बड़ी तत्परता के साथ सुचारू रूप से करने लगे.

एक समय इन्द्र की अप्सराये आकर शिवजि के आश्रम में सरोवर में स्नान करने लगी ,उन गणों ने उन्हें वहां स्नान करने से मना किया किंतु वे उनकी बात पर कोई ध्यान न देकर स्नान करती रही.अंत में उन गणों ने उन्हें लाकर शिवजी के सन्मुख उपस्थित करके सारा वृतांत कहा,शिवजि ने भी उन्हें समझा बुझाकर भविष्य में वहा स्नान न करने का आदेश दिया.कुछ दिनों के बाद फ़िर वाही अप्सराये चुपके से वहां आकर सरोवर में स्नान करने और क्रीडा करने लगी,उन गणों ने फ़िर उन्हें लाकर शिवजी के सामने हाजिर कीं और कहा की भगवन ये वही अप्सराये हैं जिन्होंने आपकी आज्ञा का उल्लंघन किया है.शिवजी ने उन गणों के साथ उनका विवाह करके एक एक लकड़ी की किली मंत्रित करके उन अपसराओ के शिर के बालो में बाँध दी जिससे वे पुनः इन्द्रलोक में न जा सकी और उन गणों के साथ ही रहने लगी.इसी वजह से बंजारों की स्त्रियों के शिर में चुंडा(जो लकड़ी का लगभग एक फ़ुट लंबा होता है ) रखने की प्रथा प्रचलित है.

जब इन लोगो के परिवार बढ़ने का समय आया तो शिवजी ने इन गणों को आशीर्वाद दे कर कहा की तुम बैल के द्बारा अपनी जीविका का उपार्जन करो यही एकमात्र तुम्हारे जीवन का मुख्य अवलंबन होगा.तबसे वे पांचो गण वन में जाकर एक एक पेड़ के निचे अपनी झोपडियां बनाकर रहने लगे और बैल पर अन्न वस्त्रादि आवश्यक वस्तुओं के द्बारा मानव मात्र की सेवा करते अपना जीवन निर्वाह करने लगे.इस प्रकार बन में जाकर रहने से “बन जा रहा “ अर्थात बंजारा या बणाज (अन्न वस्त्रादि आवश्यक वस्तुओ की सप्लाई ) करने के कार्य को निरंतर करते रहने से वे लोग “बनज करने हारा ” अर्थात बंजारा नाम से पुकारे जाने लगे.अन्यथा इनका मुख्य नाम तो “गौर” ही है जो अभीतक ये लोग अपने परस्पर बातचीत के दौरान में बारबार इसी “गौर ” शब्द का प्रयोग करते है,

The author has given various proofs to this theory will put them up here as and when I get time….There are many interesting stories related to banjaras in the book i will be posting them soon……

Regards,

Vinod Pawar



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2 comments:

रवि रतलामी said...

बढ़िया जानकारी परक आलेख है. कुछ बंजारों से सामना रतलाम क्षेत्र में ही हुआ था.

Unknown said...

Thank you ,sir for ur comments............have you knowledge more about Bnajra?

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Jai sevalal,Gormati.......I think,you want to write something.

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